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नरसिंहगढ़ श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन दक्ष प्रजापति एवं माता सती की कथा का वर्णन

पंडित सच्चिदानंद शर्मा द्वारा किया जा रहा है संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा का वाचन

राजू बैरागी राजगढ़ 9977480626

नरसिंहगढ के प्रसिद्ध मंदिर श्री जमात में श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस पं.सच्चिदानंद शर्मा ने  कथा के वृतांत में मदालसा बाई ,गौरा कुमार,विदुर जी की कथा का वर्णन किया।

उन्होंने कहा कि जब भक्ति प्रबल एवं सच्ची होती है तब ईश्वर दौड़े चले आते है भगवान विदुर जी के घर उनके समर्पण भाव के कारण चले आते है

उन्होंने बताया कि सती ने प्रजापति दक्ष की इच्छा के विरुद्ध भगवान शिव से विवाह किया था तब दक्ष इस विवाह से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि सती ने ऐसे व्यक्ति से विवाह किया था।

दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा। फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती यह सब वह बर्दाश्त नहीं कर पाई।

सती को दर्द इस बात का भी था कि वह अपने पति के मना करने के बावजूद इस यज्ञ में आ गयी थी।

पति के प्रति खुद के द्वारा किए गया ऐसा व्यवहार और पिता द्वारा पति का किया गया अपमान सती बर्दाश्त नहीं कर पाई और यज्ञ कुंड में समा गई।

यह खबर सुनते ही शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ने तांडव नृत्य किया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए।

और जंहा भी ये अंग गिरे वहां 51 शक्ति पीठ की स्थापना हुई।

हिमवान की स्त्री मैना थी। जगज्जननी भवानी माता सती ने उनकी कन्या के रूप में जन्म लिया। वे सयानी हुई,तब नारद ने गिरिजा द्वारा शिव की उपासना का उपदेश दिया। अत: गिरिजा शिव की उपासना में लग गयीं, कन्द-मूल-फल छोड़कर वे बेल के पत्ते खाने लगीं और फिर उहोंने उसको भी छोड़ दिया। तब उनके प्रेम की परीक्षा के लिए शिव ने बटु का वेष धारण किया और वे गिरिजा के पास गये।

किंतु गिरिजा अपने विचारों में अविचल रहीं। यह देखकर स्वयं शिव साक्षात प्रकट हुए और उहोंने गिरिजा को कृतार्थ किया। इसके अनंतर शिव ने सप्तर्षियों को हिमवान के घर विवाह की तिथि आदि निश्चित करने के लिए भेजा और हिमवान से लगन कर सप्तर्षि शिव के पास गये।

भगवान शंकर के साथ भूत-प्रेतादि की वह बारात देखकर नगर में कोलाहल मच गया। मैना ने जब सुना तो वह बड़ी दु:खी हुई और हिमवान के समझाने – बुझाने पर किसी प्रकार शांत हुई। यह लीला कर लेने के बाद शिव अपने सुन्दर और भव्य रूप में परिवर्तित हो गये और गिरिजा के साथ धूम-धाम से उनका विवाह हुआ।

पं.सच्चिदानंद जी शर्मा ने सुंदर झांकी ओर भजन “चले ब्याह रचाने भोले”

के साथ बारात का वर्णन किया। कथा का आयोजन परम पूज्य ब्रह्मलीन गुरुदेव की प्रथम तिथि के अवसर पर उनके शिष्य महंत दीपेंद्र दास जी के मार्गदर्शन में कथा का आनंद भक्त प्राप्त कर रहे हैं आज की कथा के यजमान है श्रीमती आरती राकेश गुप्ता श्रीमती प्रिया शिवम गुप्ता भोपाल, श्रीमती रुपाली रविंद्र गुप्ता टीनू  पूरन कुशवाहा, विनोद नामदेव सभी भक्तों ने झूमकर नृत्य किया।

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